तीव्र आर्थिक वृद्धि का लक्ष्य बनाम पर्यावरण, किसानों एवं मजदूरों के हित

(बार्क के त्रैमासिक पत्र ‘बजट समाचार’ के नए अंक से)

 

 

पिछले वर्ष राज्य (राजस्थान) में तथा इस वर्ष केन्द्र में नई सरकारों का गठन हो
चुका है तथा राज्य एवं केन्द्र सरकारें अपनी नीतियां तथा कार्यक्रम अब स्पष्ट कर
रही हैं। केन्द्र सरकार तेजी से फैसला लेने पर जोर देते हुए अब तक 240 परियोजनाओं
को पर्यावरणीय स्वीकृति दे चुकी है। नई सरकार ने पर्यावरण कानुनों के पहले से ही
लचर एवं कमजोर क्रियान्वयन को और कमजोर करने का इरादा जताया है। हाल ही में उठाये
गये कई कदम पर्यावरणीय संस्थानों को कमजोर करने वाले हैं। जैसे वन्यजीव पर
राष्ट्रीय समिति में स्वतंत्र सदस्यों की संख्या में कमी,
कोयला खदानों के विस्तार को
पर्यावरण प्रभाव अध्ययन के तहत होने वाली जन सुनवाई से मुक्त करना,
2000 हेक्टेयर से कम क्षेत्र
वाले सिंचाई परियोजनाओं को पर्यावरणीय स्वीकृति से छुट,
अत्यंत प्रदुषित क्षेत्रों में
नई परियोजनाओं पर रोक को हटाना, वन कानुनों के प्रावधानों को कमजोर करते हुए
संरक्षित क्षेत्रों के काफी करीब तक विभिन्न परियोजनाओं की स्वीकृति,
औद्योगिक एवं संरचनागत
परियोजनाओं की स्वीकृति देने के लिये वन कानुनों के मानकों में बदलाव आदि ऐसे कुछ
नीतिगत बदलाव हैं जिनसे औद्योगिक तथा ढ़ाचागत परियोजनाओं को पर्यावरणीय तथा वन
स्वीकृति मिलना अब आसान हो जायेगी।

 

 

यही नहीं पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने एक समिति बनाई है जो 5 प्रमुख
पर्यावरण संरक्षण कानुनों की समीक्षा करेगी तथा उनमें संशोधन के लिये सुझाव देगी।
सरकार के अब तक के फैसलों को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि ये संशोधन इन कानुनों
को मजबूत करने के बजाए कमजोर ही करेंगे। इसके अलावा सरकार वन अधिकार कानुन 2006 को
भी कमजोर करने का मन बना चुकी है। सरकार ने इस कानुन के तहत खनीजों की खोज के लिये
ग्राम सभा की सहमति की आवश्यकता को समाप्त कर दिया है।

 

 

इस प्रकार तीव्र आर्थिक वृद्धि के लिये सरकार ने पर्यावरण एवं वनों
की बलि देने का निश्चय कर लिया लगता है। यही नहीं श्रम एवं भुमि अधिग्रहण कानुनों
को बदलने की प्रकिया भी आरंभ हो चुकी है।

 

 

राजस्थान सरकार ने 4 श्रम कानुनों में संशोधन पारित किये तथा
केन्द्र सरकार ने भी श्रम कानुनों में परिर्वतन को मंजुरी दे दी है जिसे संसद में
पारित किया जाना है।

 

 

उसी प्रकार केन्द्र सरकार पिछले ही वर्ष पारित भुमि अधिग्रहण एवं
पुर्नवास कानुन, 2013 में कुल १९ संशोधन करने पर विचार कर ही है। राजस्थान सरकार
ने इस केन्द्रीय कानुन को राज्य में निरस्त करने तथा तेजी से भुमि अधिग्रहण करने
के आशय से एक विधेयक विधान सभा में पेश किया है, जिसे भारी विरोध के कारण विधान
सभा के प्रवर समिति को भेज दिया गया है।

 

 

केन्द्र सरकार ने हाल ही में योजना आयोग, जो केन्द्र सरकार के लिये
पंचवर्षीय योजना बनाता था तथा राज्यों की पंचवर्षीय योजनाओं को स्वीकृति देता था
, को भंग कर दिया है।

 

 

ये सारे बदलाव केवल तीव्र गति से आर्थिक वृद्धि (जी.डी.पी. ग्रोथ)
प्राप्त करने के लिये तथा औद्योगिक विकास की गति को बढ़ावा देने के उद्देश्य से
किये जा रहे हैं। पर्यावरण,
भुमि अधिग्रहण एवं श्रम कानुनों एवं  नियमों तथा मानकों में बदलाव देशी – वि देशी
कंपनीयों को देश में निवेश करने के लिए प्रेरित कर  औद्योगिक विकास की गति को तीव्र करने के उद्देश्य
से किये जा रहे हैं। प्रधानमंत्री द्वारा हाल ही में शुरू किये गये
’मेक इन इण्डिया’ अभियान का भी यही मकसद है।

 

 

इस प्रकार सरकार उद्योगों को यह स्पष्ट संदेश देना चाहती है कि देश
के पर्यावरणीय, भुमि अधिग्रहण तथा श्रम कानुन उनके लिये मुश्किलें पैदा नहीं करेंगे।

 

 

परन्तु अत्यंत महत्त्वपूर्ण प्रश्न यह है कि तेजी से होने वाला
औद्योगिक विकास किसके लिये है। क्या औद्योगिक विकास के साथ- साथ हमारे पर्यावरण,
वन, नदियों के संरक्षण, हमारे किसानों एवं खाद्यान्न
सुरक्षा के लिये कृषि भुमि को बचाना तथा उद्योगों में काम कर रहे श्रमिकों के उचित
मजदूरी,
कार्यस्थल पर बचाव, उनके सुरक्षित रोजगार तथा उनके श्रम संबधी अधिकारों
की चिंता हमारी सरकार को नहीं करनी चाहिये।

 

 

पर्यावरण, किसान
तथा श्रमिकों के हितों की कीमत पर तीव्र औद्योगिक एवं आर्थिक वृद्धि दर प्राप्त
करने से किसको फायदा होगा क्या तीव्र औद्योगिक विकास से ही सबको रोजगार मिल
पायेगा। पिछले सरकार के कार्यकाल में अन्तिम दो वर्षों को छोड़ विनिर्माण क्षेत्र
में वृद्धि की दर
10
प्रतिशत
के आस-पास रही थी (बीच में एक वर्ष छोड़कर),
परन्तु उसी अवधि में बेरोजगारी
की दर में मामुली कमी ही आ सकी। ऐसे में पर्यावरण के साथ- साथ किसानों एवं मजदूरों
के हितों को ताक पर रखकर प्राप्त विदेशी निवेश तथा औद्योगिक विकास के क्या मायने
हैं यह प्रश्न केन्द्र तथा राज्य दोनों सरकारों के लिये महत्त्वपूर्ण होना चाहिये।

 

 

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