रिसर्जेंट राजस्थान – आशा और चिंताएं

नेसार अहमद



वाइब्रेन्ट गुजरातप्रोग्रेसिव पंजाबरिसर्जेंट राजस्थानइमर्जींग केरलाइन्वेस्ट कर्नाटका……

भारतीय राज्यों में
देशी विदेशी निवेशकों को अपने यहां निवेश करने के लिये आकर्षित करने की होड़ मची हुई
है। राजस्थान की भाजपा सरकार भी इस मामले में पीछे नहीं रहना चाहती है। अपने लगभग दो
साल के शासन काल में राजस्थान सरकार ने राज्य में उद्योगों के समर्थन में कई नीतियां
तथा कानुन बनाकर राज्य में निवेष के अनुकूल वातावरण बनाये जाने का स्पष्ट सकेत दिया
है। यही नहीं मुख्यमंत्री सलाहकार परिषद् में कई उद्योगपतीयों को जगह देकर उन्हें राज्य
के नीतिगत मामलों को सीधे प्रभावित करने का मौका भी दिया गया है।

पिछले महीनों में
राज्य सरकार ने केन्द्रीय श्रम कानुनों को उद्योगों के पक्ष में संशोधित कर दिया है
,
राज्य के लिये अलग से विशेष आर्थिक क्षेत्र कानुन
बनाया है तथा राज्य के स्वास्थ्य केन्द्रों को निजी क्षेत्रों को संचालन के लिये देना
आरंभ किया है। ये सारे कदम राज्य में अधिक से अधिक निवेश लाने तथा तेजी से औधोगिकरण
करने के उद्देष्य से उठाये गये हैं। और अब अत्यंत भव्य स्तर पर रिसर्जेंट राजस्थान
का आयोजन किया जा रहा है जिसके विज्ञापन मिडीया में पिछले एक महीने से आ रहे हैं।


इस कार्यक्रम में
देश के सभी बड़े उद्योगपतीयों के अलावा विदेशी निवेशकों के आने की खबर है तथा यह बताया
जा रहा है कि इस कार्यक्रम में
3 लाख करोड़ रूपये से
अधिक के निवेश के सैकड़ों समझौतों पर दस्तखत होंगे। इन आंकड़ों को एक परिपेक्ष्य में
रखने के लिये यह नोट किया जा सकता है कि वर्तमान में राज्य का कुल सकल घरैलु उत्पाद
पौने
6 लाख करोड़ रूपये है। यही नहीं
अखबारों की मानें तो
1956 से अब तक राज्य में
केवल ढाई लाख करोड़ का निवेश हुआ है। अर्थात इस एक कार्यक्रम से सरकार को राज्य में
अब तक हुए कुल निवेष से भी अधिक तथा राज्य के जीएसडीपी के आधे से अधिक निवेश की आशा
है।

इस कार्यक्रम के द्वारा
राज्य को निवेश के लिये सब से उपयुक्त स्थल तथा राजस्थान को एक ब्रांड के रूप में पेश
किया जा रहा है। यह सब राज्य में शहरीकरण तथा औद्योगीकरण की दृष्टि से अत्यंत मोहक
तथा आर्कषक लगता है। ऐसा लगता है जैसे राजस्थान वर्षा आधारित कृषि
, पर्यटन तथा निर्यात आधारित शिल्पकारी पर निर्भर
राज्य नहीं रहकर अचानक औद्योगीकरण तथा शहरीकरण के मामले में अन्य राज्यों से भी आगे
निकल रहा हो। 

परन्तु यहां पर थोड़ा
रूक कर हम अगर हम निवेश और औद्योगिकरण की वर्तमान वास्तविक स्थिति का आंकलन करें तो
हालात लगभग उलटे दिखते हैं। वाणीज्य मंत्रालय के आकड़ों के अनुसार पिछले
15 वर्षो में देश में हुए कुल विदेशी निवेश का मात्र
आधा प्रतिशत राज्य में आया है। जहां तक निवेश के लिये आयोजित ऐसे शिखर कार्यक्रमों
की बात है
, राजस्थान सहित सभी राज्यों
के अनुभव बताते हैं कि इन कार्यक्रमों में निवेश के जो वादे किये जाते हैं उनमें से
बहुत कम पूरे हो पाते हैं। उदाहरण के लिये
2007 में आयोजित रिसर्जेंट राजस्थान में 1.62 लाख करोड़ रूपये के निवेश के वादे किये गये परन्तु
वास्तव में इसका एक तिहाई निवेश ही आ पाया। दूसरे राज्यों में भी इस प्रकार के कार्यक्रमों
में हुए निवेश के वादे और वास्तविक हुए निवेश काफी अंतर रहा है। परन्तु इससे भी महत्वपूर्ण
बात है बड़े निवेश तथा आर्थिक वृद्धि को मोड़ देना। विकास का सबसे बड़ा पैमाना मानकर राज्य
में निवेश बढ़ाने के लिये सारी नीतीयों को मोड़ देना तेजी से औद्योगीकरण करने इसके पिछे
सोच यह है कि तीव्र अर्थीक वृद्धि से समृद्धि आयेगी और रोजगार पैदा होगा।

परन्तु क्या सचमुच
तीव्र आर्थिक वृद्धि से रोजगार पैदा होता है
? अगर आंकड़ों की माने तो मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री रहते 10 वर्षो में आर्थिक वृद्धि की दर सर्वाधिक रही है।
औसत रूप से युपीए शासन में देश की औसत आर्थिक वृद्धि
7.9 प्रतिशत प्रतिवर्ष की रही है। इसके बावजूद इन दस वर्षो में
देश में रोजगार में वृद्धि ना के बराबर हुई है। आर्थिक समिक्षा
2014-15 के अनुसार इस दौरान रोजगार में वृद्धि लगभग 0.5 प्रतिशत प्रतिवर्ष के दर से हुई। यही नहीं इसी
दौरान देश में बेरोजगारी की दर में कोई कमी नहीं आई तथा यह
2 प्रतिशत के आस पास बनी रही।  ऐसे में वर्तमान में चल रहे रिसर्जेंट राजस्थान
में मध्यम तथा छोटे उद्योगों पर जोर दिया जाना महत्वपुर्ण है क्यों कि छोटे तथा मध्यम
उद्योगों में रोजगार पैदा करने की क्षमता अधिक हाती है।

परन्तु तीव्र आर्थीक
वृद्धि से रोजगार पैदा हो तो भी ऐसे रोजगार का क्या फायदा जिसमें मज़दूरों का रोजगार
सुरक्षित ना हो तथा जिसमें मज़दूरों को कार्यस्थल पर आवश्यक सुविधाएं एवं सुरक्षा नहीं
मिले। श्रम कानूनों में संशोधन कर राज्य में श्रम कानुनों में बदलाव के द्वारा अधिकांश
फैक्ट्रीयों को फेक्ट्री कानून से मुक्त कर दिया गया है। साथ ही राज्य में अब
300 तक मजदुरों वाले इकाईयों को मजदूरों की छंटनी
का अधिकार दे दिया गया है।

इसके अलावा तेजी से
होने वाले औद्योगीकरण के अन्य सामाजिक और पर्यावरणीय प्रभाव भी होंगे। राज्य में पानी
की किल्लत तथा कृषि भुमि अधिग्रहण की समस्याएं भी हैं। तीव्र औद्योगीकरण से होने वाले
प्रदुषण और पर्यावरणीय प्रभावों को न्युनतम रखने तथा उनसे निबटने के उपाय करने भी आवश्यक
हैं।



डेली न्यूज़, जयपुर में 20 नवम्बर 2015 को प्रकाशित 

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