पर्यावरणीय प्रभाव का अध्ययन अधिसूचना 2020: औद्योगिक हितों को तरजीह

नेसार अहमद 
पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 के तहत देश में विभिन्न परियोजनाओं को पर्यावरण, वन एवं मौसम बदलाव

मंत्रालय से पर्यावरणीय अनुमति (environmental  clearance-EC/environmental permission-EP) लेनी होती है। यह अनुमति इसी क़ानून के तहत जारी किये गए पर्यावरणीय प्रभाव का अध्ययन अधिसूचना  (Environmental Impact Assessment-EIA Notification) के नियमों के अनुसार दी जाती है।  वर्तमान में पर्यावरणीय प्रभाव का अध्ययन अधिसूचना 2006 लागू है, जिसमें पिछले वर्षों में कई संशोधन हुए हैं। 

अब भारत सरकार के पर्यावरण, वन एवं मौसम बदलाव मंत्रालय ने पर्यावरणीय प्रभाव का अध्ययन अधिसूचना 2020 (EIA Notification 2020) का मसौदा जारी किया है और इस पर 30 जून 2020 तक आम लोगों से आपत्ति या सुझाव मांगे गए हैं। इस मसौदे को मंत्रालय ने 23 मार्च 2020 को वेबसाइट पर डाल दिया था। लेकिन उसके एक दिन बाद ही देश में कोरोना महामारी को रोकने के लिए लॉकडाउन लागू हो गया था और सभी लोग लॉकडाउन की परेशानीयों में घिर गए, जो अभी तक समाप्त नहीं हुए हैं । ऐसे समय में मंत्रालय को पर्यावरणीय प्रभाव का अध्ययन अधिसूचना 2020 का मसौदा जारी करना क्यों ज़रूरी लगा और 30 जून तक ही इस पर टिपण्णी मंगवाना क्यों ज़रूरी है, ये समझ के बाहर है। 
जहाँ तक पर्यावरण संरक्षण की बात है, भाजपा सरकार की निति इस मामले में हमेशा ही आर्थिक हितों या उद्योगों के हितों को पर्यावरणीय हितों पर तरजीह देने की रही है। 2014 के बाद से पर्यावरण नीतियों में कई ऐसे बदलाव किये गए हैं  जो पर्यवरण संरक्षण या मौसम बदलाव को रोकने के अनुकूल नहीं हैं। उदहारण के लिए हाल ही में तटीय क्षेत्र नियमों में बदलाव करके तटीय क्षेत्र -1, जो पर्यावरण की दृष्टि से सबसे संवेदनशील क्षेत्र है, में कई प्रकार की पहले प्रतिबंधित गतिविधियों को अनुमति दी गयी और अन्य बदलाव किये गए जिससे निर्माण उद्योग और पर्यटन उद्योगों को लाभ मिले।  इसके अलावा वन्यजीव पर राष्ट्रीय समिति में स्वतंत्र सदस्यों की संख्या में कमी, अत्यंत प्रदुषित क्षेत्रों में नई परियोजनाओं पर रोक को हटाना, वन कानुनों के प्रावधानों को कमजोर करते हुए संरक्षित क्षेत्रों के काफी करीब तक विभिन्न परियोजनाओं की स्वीकृति, औद्योगिक एवं संरचनागत परियोजनाओं की स्वीकृति देने के लिये वन कानुनों के मानकों में बदलाव आदि ऐसे कुछ नीतिगत बदलाव इस सरकार के पहले कार्यकाल के आरंभ में ही किये गए थे जिनसे औद्योगिक तथा ढ़ाचागत परियोजनाओं को पर्यावरणीय तथा वन स्वीकृति मिलना आसान हो गया। यही नहीं भाजपा सरकार ने पर्यावरण संरक्षण के संस्थाओं को भी कमज़ोर किया है। 
पर्यावरणीय प्रभाव का अध्ययन अधिसूचना 2006 में भी हाल के वर्षों में कई बदलाव कर उसे लचीला बनाया गया है, जैसे कोयला खदानों के विस्तार को पर्यावरण प्रभाव अध्ययन के तहत होने वाली जन सुनवाई से मुक्त करना, 2000 हेक्टेयर से कम क्षेत्र वाले सिंचाई परियोजनाओं को पर्यावरणीय स्वीकृति से छुट आदि। 
और अब पर्यावरणीय प्रभाव का अध्ययन अधिसूचना 2020 लाया गया है जिसे कहने को तो परियोजनाओं द्वारा पर्यावरणीय नियमों के उलंघन से रोकने के लिए लाया गया है लेकिन ये एक प्रकार से उन उलंघनों को वैधता प्रदान करेगा। 
सरकार ने 2017 में एक आदेश लाकर बग़ैर पर्यावरणीय अनुमति (EC/EP) के निर्माण कार्य प्रारंभ करने वाले परियोजनाओं को बाद में अनुमति प्रदान करने का प्रावधान किया था।  लेकिन अब पर्यावरणीय प्रभाव का अध्ययन अधिसूचना 2020 में इसे बाक़ायदा संस्थागत कर दिया गया है, अर्थात उद्योग बिना पर्यावरणीय अनुमति (EC/EP) परियोजना कार्य प्रारम्भ कर सकेंगे और बाद में यह अनुमति ले सकेंगे (धारा 22)। यहाँ यह ध्यान दिलाना ज़रूरी है कि पूर्व में ऐसी कोशिशों पर सर्वोच्च न्यायालय और राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण एतराज़ कर चुके हैं। 
मसौदा पर्यावरणीय प्रभाव का अध्ययन अधिसूचना 2020 में अधिकांश क्षेत्रों की परियोजनाओं को तीन श्रेणियों A, B1 एवं B2 में बांटा गया है। तथा B2 श्रेणी की परियोजनाओं को पर्यावरणीय अनुमति (EC) प्राप्त करने के लिए पर्यावरणीय प्रभाव का अध्ययन रिपोर्ट बनाने और लोक परामर्श (public consultation) से छूट दे दी गयी है (धारा 10)।  
लोक परामर्श वो प्रक्रिया है जिसमें परियोजना से प्रभावित हो सकने वाले लोग भाग लेते हैं और पर्यावरणीय अनुमति देने वाले अधिकारियों के सामने अपनी बात रखते हैं। किसी भी परियोजना, छोटी या बड़ी, से पर्यावरण और समुदाय व लोग भी प्रभावित होते हैं। पर्यावरणीय नुक़्सानों का प्रभाव भी अधिकांशतः उन लोग पर होता है जो पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधनों पर सर्वाधिक निर्भर होते हैं। लोक परामर्श की प्रक्रिया से अधिकारियों को उन प्रभावित होने जा रहे लोगों की बात सुन कर उचित फैसला करने में मदद  मिलती है।  अतः  B2 श्रेणी के परियोजनाओं को लोक परामर्श से बाहर रखने का कोई औचित्य नहीं है। 
मसौदे में कई सार्वजनिक परियोजनाओं जैसे  सिंचाई परियोजनाओं का आधुनिकीकरण, सभी भवन, निर्माण और क्षेत्रीय विकास परियोजनाओं, अंतर्देशीय जलमार्ग, राष्ट्रीय राजमार्गों के विस्तार या चौड़ीकरण, राष्ट्रीय रक्षा और सुरक्षा से संबंधित सभी परियोजनाओं या “अन्य रणनीतिक परियोजनाओं” को लोक विमर्श से छूट दी गई है। केंद्र सरकार द्वारा, सभी रेखीय परियोजनाएं जैसे सीमावर्ती क्षेत्रों में पाइपलाइनें और 12 समुद्री मील से परे स्थित सभी ऑफ-किनारे परियोजनाएं भी इस से बहार रखी गयीं हैं। 

अब राष्ट्रीय सुरक्षा के अलावा “अन्य रणनीतिक” महत्तव की परियोजनाओं के पर्यावरणीय अनुमति से सम्बंधित सुचना भी सार्वजनिक नहीं की जाएगी।  ज़ाहिर है ये मसौदा इस पूरी प्रक्रिया में पारदर्शिता में भी कमी लाने का प्रस्ताव करता है। 
इसी प्रकार से सरकार ने मसौदा अधिसूचना 2020 में कई प्रकार की परियोजनाओं को पर्यावरणीय अनुमति लेने की आवश्यकता से मुक्त कर दिया है, जिनके के लिए पहले अनुमति लेनी आवश्यक थी। पर्यावरणीय प्रभाव का अध्ययन अधिसूचना 2020 लागू होने पर खनन परियोजनाओं को 50 साल के लिए पर्यावरणीय अनुमति मिल सकती है (धारा 19), जो पहले 30 वर्ष के लिए दी जाती थी। 
कुल मिला कर मसौदा अधिसूचना 2020 पर्यावरणीय हितों की चिंता किये बग़ैर देश को विश्व बैंक के उद्योग व्यापार में आसानी वाले सूचकांक (ease of doing doing business index) में उपर लाने का प्रयास है।  सरकार की पहली प्राथमिकता देश को इस सूचकांक में ऊपर करने की है।  इसी क्रम में ये बदलाव किये जा रहे हैं। इसी प्रकार केंद्र व राज्य सरकारें देश के श्रम कानूनों में भी उद्योग धंधों के पक्ष में बदलाव कर रही हैं।  सरकार के इन कोशिशों के नतीजे भी आ रहे हैं।  उद्योग व्यापार में आसानी वाले सूचकांक पर भारत 2014 में 134वें क्रम पर था जो अब 2020 में 67 वें स्थान पर आ गया है। 
लेकिन दुनिया में  आसान उद्योग व्यापार के अलावा अन्य भी सूचकांक हैं। मानव विकास सूचकांक हो या असमानता सूचकांक या फिर भूख का सूचकांक इन सब में हमारी स्थिति अत्यंत ख़राब है और भारत दुनिया के देशों यहाँ तक कि कई मामलों अपने पडोसी देशों से भी इन सूचकांकों में पिछड़ता नज़ारा आता है।  जहाँ तक पर्यावरण संरक्षण की बात है तो पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक पर 2020 में भारत को 100 में से मात्र 27.6 अंक मिले हैं और अपना देश 180 देशों में 168वें स्थान पर है तथा दक्षिण एशिया में अफ़ग़ानिस्तान को छोड़ कर सभी देशों का प्रदर्शन हम से बेहतर है।  
समाप्ति की कगार पर गोरवैया
अभी मौसम में बदलाव एक बड़ा संकट बना हुआ है, हम पहले से कहीं अधिक प्राकृतिक आपदाओं का सामना कर रहे हैं, हमारे जंगलों में आग लग रही है, हमारे देश में हवा और पानी की गुणवत्ता दिनों दिन खराब हो रही है, हमारे सैकड़ों पक्षी और पशु समाप्ति की कगार पर हैं, और मौसम का मिजाज़ बिगड़ता जा रहा है।  ऐसे में पर्यावरण मंत्रालय का लक्ष्य देश में पर्यावरण की स्थिति में सुधार होना चाहिए जो हमें इन संकटों से उबरने में मदद करे और पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक में ऊपर ले जाये, न  कि उद्योग व्यापर की आसानी।
(अब कोर्ट ने इस मसौदा पर सुझाव देने की अवधि 11 अगस्त तक बढ़ा दी है)
(डेली न्यूज जयपुर में 2 जुलाई 2020 को प्रकाशित)
इस आलेख को संशोधित  रूप में न्यूज़ क्लीक हिंदी ने भी प्रकाशित किया है। लिंक: 

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