जावेद अनीस
1991
से शुरू हुए आर्थिक
सुधारों के 25 वर्ष पूरे हो चुके हैं,
इन 25 सालों के दौरान देश की
जीडीपी तो खूब बढ़ी हैं और भारत दुनिया के दस बड़े अर्थव्यवस्थाओं में शामिल हो गया
है I आज जब “महाबली” चीन सहित दुनिया भर की तमाम बड़ी
अर्थव्यवस्थायें मंदी की गिरफ्त में है तो भारत अभी भी “अंधो में काना राजा” बना
हुआ है I लेकिन दूसरी तरफ इस दौरान लोगों के बीच आर्थिक खाई बहुत व्यापक हुई है
I साल 2000 में जहां एक प्रतिशत लोगों के पास देश की कुल
सम्पत्ति का 37 प्रतिशत था, वहीं 2014 में यह बढ़ का
70 प्रतिशत हो गया है, जिसका सीधा मतलब यह है कि इस मुल्क के 99 प्रतिशत नागिरकों के पास
मात्र 30 प्रतिशत सम्पत्ति बची है I यह असमानता साल दर साल बढ़ती ही जा रही है I आर्थिक सुधारों से किसका विकास हो रहा हैं इसे इस तथ्य से
समझा जा सकता है कि मानव विकास सूचकांक के 185
देशों की सूची में हम 151वें
स्थान पर पर बने हुए हैं I
से शुरू हुए आर्थिक
सुधारों के 25 वर्ष पूरे हो चुके हैं,
इन 25 सालों के दौरान देश की
जीडीपी तो खूब बढ़ी हैं और भारत दुनिया के दस बड़े अर्थव्यवस्थाओं में शामिल हो गया
है I आज जब “महाबली” चीन सहित दुनिया भर की तमाम बड़ी
अर्थव्यवस्थायें मंदी की गिरफ्त में है तो भारत अभी भी “अंधो में काना राजा” बना
हुआ है I लेकिन दूसरी तरफ इस दौरान लोगों के बीच आर्थिक खाई बहुत व्यापक हुई है
I साल 2000 में जहां एक प्रतिशत लोगों के पास देश की कुल
सम्पत्ति का 37 प्रतिशत था, वहीं 2014 में यह बढ़ का
70 प्रतिशत हो गया है, जिसका सीधा मतलब यह है कि इस मुल्क के 99 प्रतिशत नागिरकों के पास
मात्र 30 प्रतिशत सम्पत्ति बची है I यह असमानता साल दर साल बढ़ती ही जा रही है I आर्थिक सुधारों से किसका विकास हो रहा हैं इसे इस तथ्य से
समझा जा सकता है कि मानव विकास सूचकांक के 185
देशों की सूची में हम 151वें
स्थान पर पर बने हुए हैं I
किसी भी अर्थव्यवस्था के
तीन प्रमुख घटक होते हैं पूँजी, राज्य
व मजदूर, और अर्थव्यवस्था का माडल
इस बात से तय होता है कि इन तीनों में से किसका वर्चस्व है I नरसिंह राव और मनमोहन सिंह की जोड़ी ने जो नयी आर्थिक नीतियाँ लागू की थीं उसका मूल दर्शन यह है कि
अर्थवयवस्था में राज्य की भूमिका सिकुड़ती जाए और इसे पूँजी व इसे नियंत्रित करने
वाले सरमायेदारों के भरोसे छोड़ दिया जाए I इस वयवस्था के दो सबसे अहम मंत्र है “निवेश” और “सुधार” I 25 साल
पहले तत्कालीन वित्तमंत्री मनमोहन सिंह
ने कहा था कि “सुधारों” का यह सिलसिला एक ऐसी धारा
है, जिसके प्रवाह को मोड़ा नहीं जा सकता I आज लगभग सभी पार्टियाँ मनमोहन सिंह की इस बात को ही सही साबित करने में जुटी हुई हैं I
सामान्य
तर्क यह कहता है कि वैश्वीकृत भारत में मजदूरों पर भी अंतर्राष्ट्रीय
मानक लागू हों I जबकि “उदारीकरण” कारोबारी नियमों को आसान
बनाने की मांग करता है I इसलिए भारत सरकार को
राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सुझाव दिए जाते हैं कि देश को कारोबार के लिहाज से “बेहतर” बनाने के लिए उसे प्रशासनिक,
नियामिक और श्रम सुधार करने
होंगे और इस दिशा में आने वाली सभी अड़चनों को दूर करना होगा I नरसिंह राव से लेकर यूपीए-2
तक पिछली सभी सरकारें इसी
के लिए प्रतिबद्ध रही है और सुधार व निवेश उनके एजेंडे पर रहा हैं I
वे अर्थव्यवस्था के एक बड़े
हिस्से को सावर्जनिक क्षेत्र में ले आये हैं, नियमों को ढीला बना दिया गया है, तथा सेवा क्षेत्र का अनंत
विस्तार हुआ है I लेकिन उदारीकरण के दुसरे चरण में इसके पैरोकार मनमोहन सिंह
की खिचड़ी और थकी सरकार से निराश थे और उन्हें मनमोहन सिंह के एक नए संस्करण की तलाश थी जो उन्हें उस समय के गुजरात के
मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी में दिखाई पड़ रहा था I
तर्क यह कहता है कि वैश्वीकृत भारत में मजदूरों पर भी अंतर्राष्ट्रीय
मानक लागू हों I जबकि “उदारीकरण” कारोबारी नियमों को आसान
बनाने की मांग करता है I इसलिए भारत सरकार को
राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सुझाव दिए जाते हैं कि देश को कारोबार के लिहाज से “बेहतर” बनाने के लिए उसे प्रशासनिक,
नियामिक और श्रम सुधार करने
होंगे और इस दिशा में आने वाली सभी अड़चनों को दूर करना होगा I नरसिंह राव से लेकर यूपीए-2
तक पिछली सभी सरकारें इसी
के लिए प्रतिबद्ध रही है और सुधार व निवेश उनके एजेंडे पर रहा हैं I
वे अर्थव्यवस्था के एक बड़े
हिस्से को सावर्जनिक क्षेत्र में ले आये हैं, नियमों को ढीला बना दिया गया है, तथा सेवा क्षेत्र का अनंत
विस्तार हुआ है I लेकिन उदारीकरण के दुसरे चरण में इसके पैरोकार मनमोहन सिंह
की खिचड़ी और थकी सरकार से निराश थे और उन्हें मनमोहन सिंह के एक नए संस्करण की तलाश थी जो उन्हें उस समय के गुजरात के
मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी में दिखाई पड़ रहा था I
सड़क निर्माण मज़दूर |
2014
ने नरेंद्र मोदी को वह
मौका दे दिया कि वे इन उम्मीदों को पूरा कर सकें I अब जबकि उनकी स्पष्ट बहुमत की सरकार है तो राष्ट्रीय-बहुराष्ट्रीय
निगम और उनके पैरोकार यह उम्मीद कर रहे हैं कि मोदी सरकार उदारीकरण की प्रक्रिया
में गति लाये और श्रम सुधारों की प्रक्रिया को आगे बढ़ाये I श्रम कानूनों में सुधार को लेकर उनका तर्क है कि मौजूदा
श्रम कानून कंपनियों के खिलाफ हैं और नई नौकरियों में बाधक हैं इसलिए निवेश बढ़ाने
व ज्यादा नौकरियां पैदा करने के लिये लिए श्रम कानूनों को शिथिल करना जरूरी है I इसको लेकर मोदी सरकार भी बहुत उत्साहित दिखाई पड़ रही है तभी
तो राज काज संभालने के दो महीने के भीतर ही केंद्रीय कैबिनेट ने श्रम
क़ानूनों में 54 संशोधन प्रस्तावित कर दिए थे I हमारे देश में करीब 44
श्रम संबंधित कानून हैं I सरकार इनको
चार कानूनों में एकीकृत करना
चाहती हैं I प्रस्तावित बदलाओं से न्यूनतम मेहनताना और कार्य समयावधि सीमा हट जायेगी, “हायर” और “फायर” के नियम आसन हो जायेंगें
श्रमिकों के लिए यूनियन बनाना और बंद या हड़ताल बुलाना मुश्किल हो जाएगा I
ने नरेंद्र मोदी को वह
मौका दे दिया कि वे इन उम्मीदों को पूरा कर सकें I अब जबकि उनकी स्पष्ट बहुमत की सरकार है तो राष्ट्रीय-बहुराष्ट्रीय
निगम और उनके पैरोकार यह उम्मीद कर रहे हैं कि मोदी सरकार उदारीकरण की प्रक्रिया
में गति लाये और श्रम सुधारों की प्रक्रिया को आगे बढ़ाये I श्रम कानूनों में सुधार को लेकर उनका तर्क है कि मौजूदा
श्रम कानून कंपनियों के खिलाफ हैं और नई नौकरियों में बाधक हैं इसलिए निवेश बढ़ाने
व ज्यादा नौकरियां पैदा करने के लिये लिए श्रम कानूनों को शिथिल करना जरूरी है I इसको लेकर मोदी सरकार भी बहुत उत्साहित दिखाई पड़ रही है तभी
तो राज काज संभालने के दो महीने के भीतर ही केंद्रीय कैबिनेट ने श्रम
क़ानूनों में 54 संशोधन प्रस्तावित कर दिए थे I हमारे देश में करीब 44
श्रम संबंधित कानून हैं I सरकार इनको
चार कानूनों में एकीकृत करना
चाहती हैं I प्रस्तावित बदलाओं से न्यूनतम मेहनताना और कार्य समयावधि सीमा हट जायेगी, “हायर” और “फायर” के नियम आसन हो जायेंगें
श्रमिकों के लिए यूनियन बनाना और बंद या हड़ताल बुलाना मुश्किल हो जाएगा I
राज्यों में में
श्रम सुधार
जयपुर के नगीना उद्योग के मज़दूर |
पिछले
दो सालों में मोदी सरकार के श्रम कानून में सुधार के प्रयासों को श्रमिक संगठनों
से कड़ा विरोध झेलना पड़ी है
I ट्रेड यूनियनों का कहना है कि यह एकतरफा बदलाव है I इनसे
मालिकों को ज्यादा अधिकार
मिल जायेंगे और उनके लिए कर्मचारियों की छंटनी करना और काम के घंटे बढ़ाना आसन हो
जाएगा I एक तरफ ट्रेड यूनियन विरोध कर रहे हैं तो दूसरी तरह राज्य
सभा में सरकार को बहुमत नहीं है, शायद इसीलिए सत्ताधारी पार्टी ने एक दूसरा रास्ता निकला है
और राजस्थान, गुजरात, मध्यप्रदेश महाराष्ट्र
जैसे भाजपा शासित राज्यों में में इस प्रक्रिया को आगे बढ़ाया गया है I
दो सालों में मोदी सरकार के श्रम कानून में सुधार के प्रयासों को श्रमिक संगठनों
से कड़ा विरोध झेलना पड़ी है
I ट्रेड यूनियनों का कहना है कि यह एकतरफा बदलाव है I इनसे
मालिकों को ज्यादा अधिकार
मिल जायेंगे और उनके लिए कर्मचारियों की छंटनी करना और काम के घंटे बढ़ाना आसन हो
जाएगा I एक तरफ ट्रेड यूनियन विरोध कर रहे हैं तो दूसरी तरह राज्य
सभा में सरकार को बहुमत नहीं है, शायद इसीलिए सत्ताधारी पार्टी ने एक दूसरा रास्ता निकला है
और राजस्थान, गुजरात, मध्यप्रदेश महाराष्ट्र
जैसे भाजपा शासित राज्यों में में इस प्रक्रिया को आगे बढ़ाया गया है I
राजस्थान
: सुधारों की प्रयोगशाला !
: सुधारों की प्रयोगशाला !
राजस्थान
तो जैसे इन तथाकथित सुधारों की प्रयोगशाला के तौर पर उभरा है I राजस्थान विधानसभा ने जो औद्योगिक विवाद (राजस्थान संशोधन) विधेयक 2014, ठेका
श्रम (विनियमन और उत्पादन) राजस्थान संशोधन विधेयक,
कारखाना (राजस्थान संशोधन)
विधेयक और प्रशिक्षु अधिनियम पारित किया है, जिसके बाद अब कंपनियाँ मजदूरों को नौकरी से निकालने के
मामले में और भी बेलगाम हो जायेगीं, 100
के जगह पर अब 300 कर्मचारियों तक के कारखानो
को बंद करने के लिए सरकार से अनुमति की बाध्यता रह गई है, इसी तरह से ठेका मज़दूर
कानून भी अब मौजुदा 20 श्रमिकों के स्थान पर 50
कर्मचारियों पर लागू होगा
इसका अर्थ यह है कि कोई कंपनी अगर
49 मजदूरों को ठेके पर रखती है तो उन मजदूरों के प्रति उसकी किसी
प्रकार की जबावदेही नहीं होगी I पहले एक कारखाने में किसी
यूनियन के रूप में मान्यता के लिए 15
प्रतिशत सदस्य संख्या
जरूरी थी लेकिन इसे बढ़ाकर 30 प्रतिशत कर दिया गया है इसका अर्थ यह होगा कि
मजदूरों के लिए अब यूनियन बनाकर मान्यता प्राप्त करना मुश्किल हो गया है I इससे नियोक्ताओं को यह
अवसर मिलेगा कि वे अपनी पंसदीदा यूनियनो को ही बढावा दें I
तो जैसे इन तथाकथित सुधारों की प्रयोगशाला के तौर पर उभरा है I राजस्थान विधानसभा ने जो औद्योगिक विवाद (राजस्थान संशोधन) विधेयक 2014, ठेका
श्रम (विनियमन और उत्पादन) राजस्थान संशोधन विधेयक,
कारखाना (राजस्थान संशोधन)
विधेयक और प्रशिक्षु अधिनियम पारित किया है, जिसके बाद अब कंपनियाँ मजदूरों को नौकरी से निकालने के
मामले में और भी बेलगाम हो जायेगीं, 100
के जगह पर अब 300 कर्मचारियों तक के कारखानो
को बंद करने के लिए सरकार से अनुमति की बाध्यता रह गई है, इसी तरह से ठेका मज़दूर
कानून भी अब मौजुदा 20 श्रमिकों के स्थान पर 50
कर्मचारियों पर लागू होगा
इसका अर्थ यह है कि कोई कंपनी अगर
49 मजदूरों को ठेके पर रखती है तो उन मजदूरों के प्रति उसकी किसी
प्रकार की जबावदेही नहीं होगी I पहले एक कारखाने में किसी
यूनियन के रूप में मान्यता के लिए 15
प्रतिशत सदस्य संख्या
जरूरी थी लेकिन इसे बढ़ाकर 30 प्रतिशत कर दिया गया है इसका अर्थ यह होगा कि
मजदूरों के लिए अब यूनियन बनाकर मान्यता प्राप्त करना मुश्किल हो गया है I इससे नियोक्ताओं को यह
अवसर मिलेगा कि वे अपनी पंसदीदा यूनियनो को ही बढावा दें I
गुजरात : हड़ताल पर समझौता
शुल्क
सितंबर, 2015 में राष्ट्रपति द्वारा गुजरात सरकार के श्रम कानून संशोधन
अधिनियम 2015 को स्वीकृति कर दिया गया है I इस अधिनियम के कुछ उपबंध
केंद्र सरकार के श्रम कानून अधिनियम के उपबंधों के विरुद्ध थे, इसी कारण इसे राष्ट्रपति की स्वीकृति की आवश्यकता पड़ी I अधिनियम में मजदूरों एवं मालिकों के बीच होने वाले विवादों
को अदालतों से बाहर सुलझाने पर बल दिया गया है I इसी तरह से यदि श्रमिक श्रम आयुक्त को सूचना दिए बिना हड़ताल
पर जाते हैं तो उनके ऊपर 150 रुपये प्रति दिन के हिसाब से समझौता शुल्क लगाया जा सकेगा
जो अधिकतम 3000 तक है I यह सरकार को “जनपयोगी
सेवाओं” में हड़ताल पर एक बार में 1
वर्ष तक प्रतिबंधित करने
का अधिकार देता है I अधिनियम मालिकों को बिना पूर्व सूचना के श्रमिकों के कार्य
में परिवर्तन का अधिकार भी देता है
I
अधिनियम 2015 को स्वीकृति कर दिया गया है I इस अधिनियम के कुछ उपबंध
केंद्र सरकार के श्रम कानून अधिनियम के उपबंधों के विरुद्ध थे, इसी कारण इसे राष्ट्रपति की स्वीकृति की आवश्यकता पड़ी I अधिनियम में मजदूरों एवं मालिकों के बीच होने वाले विवादों
को अदालतों से बाहर सुलझाने पर बल दिया गया है I इसी तरह से यदि श्रमिक श्रम आयुक्त को सूचना दिए बिना हड़ताल
पर जाते हैं तो उनके ऊपर 150 रुपये प्रति दिन के हिसाब से समझौता शुल्क लगाया जा सकेगा
जो अधिकतम 3000 तक है I यह सरकार को “जनपयोगी
सेवाओं” में हड़ताल पर एक बार में 1
वर्ष तक प्रतिबंधित करने
का अधिकार देता है I अधिनियम मालिकों को बिना पूर्व सूचना के श्रमिकों के कार्य
में परिवर्तन का अधिकार भी देता है
I
मध्यप्रदेश
व महाराष्ट्र
व महाराष्ट्र
22 जुलाई 2015 को
मध्यप्रदेश विधानसभा ने 15 केन्द्रीय श्रम कानून के प्रावधानों को “उदार” एवं “सरल” बनाते हुए “मध्यप्रदेश श्रम कानून
(संशोधन) एवं विविध प्रावधान विधेयक-2015”
पारित किया है, जिसे राष्ट्रपति की सहमति के लिए केन्द्र भेजा गया है I महाराष्ट्र में भी इसी तरह के “सुधार” की तैयारी की जा रही है I महाराष्ट्र के श्रम विभाग ने वही संशोधन प्रस्तावित किये
हैं जो राजस्थान सरकार ने लागु किये हैं इन बदलावों से राज्य की 95 % औद्योगिक
इकाइयों को सरकार की मंजूरी के बगैर अपने कर्मचारियों की छंटनी करने या इकाई को बंद करने की छूट मिल जायेगी I
सम्मानजनक
रोजगार की आशा समाप्त !
इन
तथाकथित “सुधारों” से लम्बे संघर्षों के बाद मजदूरों को सीमित अधिकारों को भी
खत्म किया जा रहा है I यह इरादतन किया जा रहा है
ताकि नियोक्ताओं व कॉरपोरेट घरानों को फायदा पहुचाया जा सके I हालांकि इसके पीछे तर्क दिया जा रहा है कि इससे रोजगार में
वृद्धि होगी जिसका मतलब यह है अब सरकार के लिए रोजगार का मतलब सम्मानजनक
जीवन जीने लायक रोजगार से नहीं रह गया है
I
तथाकथित “सुधारों” से लम्बे संघर्षों के बाद मजदूरों को सीमित अधिकारों को भी
खत्म किया जा रहा है I यह इरादतन किया जा रहा है
ताकि नियोक्ताओं व कॉरपोरेट घरानों को फायदा पहुचाया जा सके I हालांकि इसके पीछे तर्क दिया जा रहा है कि इससे रोजगार में
वृद्धि होगी जिसका मतलब यह है अब सरकार के लिए रोजगार का मतलब सम्मानजनक
जीवन जीने लायक रोजगार से नहीं रह गया है
I
हमारे देश में कामगारों का
अधिकतर हिस्सा असंगठित क्षेत्र में आता है
I राष्ट्रीय नमूना सर्वे संगठन (एनएसएसओ) के अनुसार वर्ष 2009-10 में
भारत में कुल 46.5 करोड़ कामगार थे
I इसमें मात्र 2.8
करोड़ (छह प्रतिशत) ही
संगठित क्षेत्र में कार्यरत थे तथा बाकी 43.7 करोड़
यानी 97.2 प्रतिशत असंगठित क्षेत्र में कार्यरत थे I असंगठित क्षेत्र में काम कर रहे अधिकतर कामगारों की स्थिति
खराब है I वे न्यूनतम मजदूरी और सुविधाओं के साथ काम कर रहे हैं और सामाजिक
सुरक्षा के लाभ से महरूम हैं
I एनएसएसओ के 68वें चरण के सर्वेक्षण के अनुसार वर्ष 2011-12 में भारत
में करीब 68 फीसदी कामगारों के पास न तो लिखित नौकरी का अनुबंध था और न
ही उन्हें सवेतन अवकाश दिया जाता था
I इसी तरह से ज्यादातर असंगठित श्रमिक ट्रेड यूनियन के दायरे
से बाहर हैं I उपरोक्त रिपोर्ट के अनुसार 87
फीसदी कामगार किसी संगठन
या यूनियन से नहीं जुड़े थे
I
मजदूरों
के लिए अनुदार
के लिए अनुदार
भूमंडलीकरण
के इस दौर में पूँजी अपने निवेश के लिए ऐसे स्थानों के तलाश में रहती है जहाँ श्रम और अन्य सुविधायें सस्ती हों I हमारे देश में लोग इतने मजबूर हैं कि वे कम मजदूरी और
गैर-मानवीय हालातों में
काम करने को तैयार हैं I इसलिए भारत को असीमित मुनाफा कमाने के लिए एक आदर्श देश के रूप में
प्रचारित किया जा रहा है I श्रम सुधारों के लिए 2016
और इसके बाद मोदी सरकार के
बचे दो साल बहुत अहम होने जा रहे हैं
I “मेक इन इंडिया”
अभियान की शुरुआत जोर शोर
से हो चुकी है और प्रधान मंत्री इसे दुनिया के कई देशों प्रचारित कर चुके हैं
I स्वाभाविक रूप से सरकार का अगला
कदम श्रम सुधारों की गति को तेज करना होगा I
के इस दौर में पूँजी अपने निवेश के लिए ऐसे स्थानों के तलाश में रहती है जहाँ श्रम और अन्य सुविधायें सस्ती हों I हमारे देश में लोग इतने मजबूर हैं कि वे कम मजदूरी और
गैर-मानवीय हालातों में
काम करने को तैयार हैं I इसलिए भारत को असीमित मुनाफा कमाने के लिए एक आदर्श देश के रूप में
प्रचारित किया जा रहा है I श्रम सुधारों के लिए 2016
और इसके बाद मोदी सरकार के
बचे दो साल बहुत अहम होने जा रहे हैं
I “मेक इन इंडिया”
अभियान की शुरुआत जोर शोर
से हो चुकी है और प्रधान मंत्री इसे दुनिया के कई देशों प्रचारित कर चुके हैं
I स्वाभाविक रूप से सरकार का अगला
कदम श्रम सुधारों की गति को तेज करना होगा I
निश्चित
रूप से उदारीकरण का यह दौर मजदूरों के लिए अनुदार है और उनके लिए परिस्थितियां बद
से बदतर होती जा रही हैं I
रूप से उदारीकरण का यह दौर मजदूरों के लिए अनुदार है और उनके लिए परिस्थितियां बद
से बदतर होती जा रही हैं I
जावेद अनीस भोपाल में कार्यरत सामाजिक कार्यकर्ता हैं व सामाजिक, आर्थिक तथा राजनैतिक मुद्दों पर लिखते रहते हैं I उनसे javed4media@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है I
फोटो –
सड़क निर्माण मज़दूर – http://www.stockpicturesforeveryone.com/ से
जयपुर नगीना मज़दूर – नेसार अहमद
मेक इन इंडिया लोगो – मेक इन इंडिया वैबसाइट से